वेद क्या हैं और इनकी रचना किसने की ?
आपने अपने जीवन में "वेद" शब्द तो निश्चय ही सुना होगा कभी न कभी, टेलीविज़न पर, किसी गोष्ठी में, किसी परिचित के मुख से या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा | जब आपने वेद शब्द पहली बार सुना होगा तो आपके मन में इसके बारे में और ज्यादा जानने की जिज्ञासा उत्पन्न नहीं हुई होगी | परन्तु जब आपने इस शब्द को बार-बार सुना होगा तब आप खुद को इसके बारे में और जानने से रोक नहीं पाए होंगे |
आपकी वेद शब्द को और गहनता से जानने की जिज्ञासा को शांत करने का प्रयास हम इस लेख में करेंगे | तो बने रहिये हमारे साथ और हमारे इस लेख को अंत तक पढ़िये |
वेद क्या हैं ?
वेद विश्व का प्राचीनतम धर्म ग्रन्थ है और सनातन धर्म और संस्कृति का आधार स्तंभ है | कहा जाता है की इसकी रचना भगवान् ने खुद सृष्टि की रचना से पहले ही कर दी थी |
वेदों में दिया गया ज्ञान अति विस्तृत है और जीवन के हर पहलु को छूता है | इनमें दिया गया ज्ञान हमें अपने जीवन को आध्यात्मिक रूप से जीने में मदद करता है, हमारा अच्छी तरह से मार्गदर्शन करता है और हमें अपने जीवन की हर समस्या का हल ढूंढ़ने में मदद करता है | हिन्दू धर्म के सभी ग्रंथ जैसे की पुराण, शास्त्र, ज्योतिष, वास्तु और आयुर्वेद की वेद से ही हुई है |
वेद की रचना किसने की ?
इस बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं है की वेदों की रचना किसने की परन्तु यह माना जाता है कि वेद की रचना खुद भगवान् ने की और उन्होंने इसमें दिए ज्ञान को ऋषियों को बताया जिन्होंने इसे अपने शिष्यों को बताया और उन्होंने अपने शिष्यों को बताया | फिर आगे चल कर महर्षि वेदव्यास ने वेदों में दिये गये ज्ञान को लिपिबद्ध किया |
शुरुआत में वेद एक ही था परन्तु बाद में वेद व्यास जी ने इन्हें सरलता के लिए चार भागों :- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद में विभाजित कर दिया |
आईये वेदों की रचना में अलग अलग प्रचलित मतों के बारे में और जानकारी प्राप्त कर लें |
1.पहले मत के अनुसार वेदों का ज्ञान अपौरुषेय है अर्थात इसे किसी पुरुष के द्वारा किया नहीं जा सकता और इसे ईश्वर कृत माना गया है | सभी चारों वेदों का संबंध यज्ञ से है | वेद के ज्ञान को विराटपुरुष या कारणब्रह्म से श्रुति परम्परा द्वारा सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी ने प्राप्त किया | ऐसा भी माना जाता है कि परमात्मा ने सबसे पहले चार अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा नामक महर्षियों की आत्माओं में क्रमशः ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद का ज्ञान दिया | इन महर्षियों ने फिर यह ज्ञान ब्रह्मा जी को प्रदान दिया। इन्हें श्रुति भी कहते हैं यानि 'सुना हुआ ज्ञान'। क्योंकि इन्हें सुनकर लिखा गया था।
2.दुसरे मत के अनुसार हज़ारों वर्ष पहले जब हमारे ऋषि मुनि घोर तपस्या में थे तो उन्होंने ही वेदों के बारे में सुना था | मानव जाति के कल्याण हेतु उन्होंने वेदों को अपने शिष्यों को पढ़ाना शरू किया और यह परम्परा इसी तरह निरंतर चलती रही आगे से आगे जिसके कारण वेद हमारे पास हैं | शुरू में वेदों का ज्ञान बहुत विशाल और विस्तृत था परन्तु कालांतर में इसमें से कुछ ज्ञान सदा के लिए विलुप्त हो गया |
वेद के ज्ञान को पुस्तक रूप में प्रस्तुत करने का काम महर्षि वेद व्यास ने किया और उन्होंने इसके ज्ञान को चार भागों में बाँट दिया |
3.तीसरे मत के अनुसार जब भगवान विष्णु ने सृष्टि की रचना के बारे में विचार किया तब उन्होंने सबसे पहले ब्रह्म देव को अपनी नाभि से प्रकट किया और उन्हें ब्रह्मांड की उत्पति और सृजन का जिम्मा सौंप दिया।
अहम की वजह से ब्रह्म देव में ज्ञान की कमी थी। इसलिए उन्होंने भगवान विष्णु की बहुत तपस्या की और विष्णु जी से उन्हें वरदान स्वरूप ज्ञान प्राप्त हुआ। जब एक बार ब्रह्मा पुत्र देवर्षि नारद इसी ज्ञान का सार जानने ब्रह्मा जी के पास पहुंचे तब उन्होंने ही सर्वप्रथम नारद जी को ज्ञान श्रवण कराया।
ब्रह्मा जी के मुख से निकल रहे शब्द अपने-आप हवा में एक किताब पर लिखे लेख की तरह अंकित होते चले गये और इस तरह स्वतः ही वेदों का निर्माण हो गया। माना जाता है कि वेदों को सर्वप्रथम ब्रह्म देव ने रचा था जिसके बाद ब्रह्म देव द्वारा वेदों का ज्ञान सप्तऋषियों को प्राप्त हुआ और फिर उनसे अन्य ऋषिगणों को।
समय पर वेदों को कई ऋषियों ने लिखने का प्रयास किया लेकिन ब्रह्म देव ने जिस ज्ञान को वेदों में अंकित किया था वह कठिन संस्कृत में था इसी वजह से कोई भी वेदों को लिखने में समर्थ नहीं हो पाया |
बाद में द्वापर युग के अंत के दौरान महऋषि वेदव्यास ने सभी वेदों और पुराणों को लिखने का निश्चय किया और वेदों के विस्तारित स्वरूप को संक्षिप्त रूप में परिवर्तित कर दिया और वेदों को चार भाग में बांट दिया | इनके नाम थे - ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। इनको विभाजित करने का उद्देश्य था की इनकी भाषा को इतना सरल करना की आम मनुष्य भी इन्हें समझ सकें |
सत्य तो यह है की वेदों की रचना तो सृष्टि की रचना से पहले ही हो गयी थी नकि जब महर्षि वेदव्यास ने वेदों को सरल रूप देकर मनुष्य तक पहुंचाया |
आईये अब चारों वेदों के बारे में भी कुछ ज्ञान अर्जित कर लें |
ऋग्वेद सबसे पहला वेद है | इसके अंदर देवी देवताओं के बारे में बताया गया है और यह भी बताया गया है की उन्हें किस तरह प्रसन्न किया जा सकता है | मंत्रो का किस प्रकार उच्चारण करें ताकि उन्हें प्रसन्न किया जा सके, यह भी ऋग्वेद में बताया गया है | इसमें 10 मंडल, 1028 सूक्त और 11000 मंत्र विद्यमान हैं | इन मन्त्रों का उच्चारण पूजा-पाठ में किया जाता है | ऋग्वेद की पांच शाखायें हैं शाकल्प , वाष्कल, अश्लायन, शांखायन, माण्डूकायन | ऋग्वेद में चिकित्सा के बारे में भी बताया गया है | इसमें जल चिकित्सा, वायु चिकित्सा, सौर चिकित्सा और हवन दवारा की जाने वाली चिकित्सा का भी जिक्र है | इसमें 125 औषधियों के बारे में भी बताया गया है जो 107 स्थानों पर मिलती हैं | सोम औषधि का भी इसमें वर्णन है जिसकी वजह से च्यवन ऋषि वृद्धावस्था से पुनः युवा हो पाए थे | आज के आधुनिक युग में भी ऋग्वेद का बड़ा महत्व है क्यूंकि हम इसमें दी गयी औषधियों का उपयोग करते हैं |
यजुर्वेद का अर्थ गतिशील है और इसमें जु का अर्थ है आकाश | इस वेद में यज्ञ की विधियों और यज्ञ में प्रयोग होने वाले मन्त्रों के बारे में बताया गया है | इसके अलावा तत्वज्ञान के बारे में भी ज्ञान दिया गया है जिसके द्वारा आप रहस्यमयी ज्ञान पा सकते हैं | शुक्ल और कृष्णा यजुर्वेद की दो शाखाएं हैं जिनके बारे में इस ग्रन्थ में ज्ञान मिलता है |
सामवेद पूर्णतया संगीत के ऊपर आधारित वेद है | इसमें विद्यमान अधिकतर मंत्र ऋग्वेद से लिए गए थे लेकिन उनमें बदलाव किया गया था | उन्हें एक संगीत की तरह लिखा गया था जिन्हें हम गाते हुए बोल सकते हैं | इसमें 1824 मंत्र हैं जिनमें सविता, इंद्र और अग्नि देवी-देवताओं के बारे में उल्लेख है | इस वेद में मुख्य रूप से तीन शाखाएं हैं और 75 ऋचाएं हैं |
इस वेद में रहस्यमयी चीज़ें, उनकी विधाएँ और चमत्कार से जुडी चीज़ों के बारे में बताया गया है | इसके आलावा जड़ी बूटियों और उनसे होने वाले इलाज़ का भी जिक्र भी अथर्वेद में मिलता है | इसमें यह बभी बताया गया है कि जो व्यक्ति श्रेष्ठ कर्म करता है और उसके साथ साथ परमात्मा की भक्ति भी करता है उसे एक दिन मोक्ष जरूर मिलता है | इस वेद में कुल 10 अध्याय हैं जिनके अंदर 5687 मंत्र हैं | अथर्वेद में सरस्वती और गंगा नदी का वर्णन भी विद्यमान है |
आशा है इस लेख में दी गयी जानकारी आपको हिन्दू और सनातन धर्म के बारे में और जानने के लिए जिज्ञासा उत्पान करेगी और आपको अपने जीवन में अध्यात्म और सुविचार अपनाने और मानव कल्याण के लिए अपने जीवन को सम्पर्पित करने के लिए प्रेरित करेगी |
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वेद क्या हैं और इनकी रचना किसने की ?